Wednesday, September 17, 2008

भगवन भी insecurity का शिकार है क्या ???


अक्सर भगवन के अस्तित्व पर बहुत लोगों से मेरी बहस हो जाती है..ऐसा नही है के मैं उनके होने से इनकार करती हूँ… पर मेरा मानना है की तर्क किसी के वजूद को और पुख्ता कर देता है… जब शक होता है तो हम वजेह और साबुत ढूंढते हैं…. मैं ये मानती हूँ की शक यकीन की पहली सीढ़ी है.. किस भी बात पर आँख मूंद कर यकीन करने कोई अकलमंदी नही ….. बड़े बड़े गुरु कहते हैं की तर्क से भगवन को नही समझा जा सकता… तो क्या हम अपने दिमाग मे उठे सवालों को यूँही किसी जवाब तक पहुंचाए बिना छोड़ दे… और जब कोई फिर पूछे की जिस पर इतना यकीन करते हो उसकी ताकत साबित कर सकते हो… तब हम निरुत्तर हो जायेंगे …क्यूंकि कहीं न कहीं हमने भी ख़ुद से येही सवाल किया था..


ये हमेशा
मेरे जेहन मे आता है की जब वो भगवन इतना शक्तिशाली हैजिसकी मर्ज़ी के बिना एक पत्ता भी नही हिलता ..तो क्या वाकई उसे हमारी पूजा अर्चना की जरुरत है….उसे किस का भय हैहमेशा वो कहते हैंकी एक बार मेरे पास आओ तो मैं सब को तुम्हारा गुलाम कर दूंगाएक बार मेरे पिच्छे चलो दुनिया तुम्हारे पीछे चलेगी”…क्यूँ???..जो ख़ुद इतना शक्तिशाली हैं , सम्पुरण है, तो उन्हें क्यूँ हमारे साथ की जरुरत हैयह भी कहा जाता है की इंसान भगवान् का बनाया हुआ खिलौना हैवो हमसे खेलते हैंक्यूँ???…खेल से उन्हें खुशी मिलती हैपर वो तो ख़ुद परमानन्द हैजिनको आनंद की कोई कमी नही ..फिर इंसानों की तरह यह खुश होने की लालसा कैसी उन्हेंक्यूँ ऐसा है की इतने वर्त और नियम हैं .. क्या वो हमारी पूजा के भूखे हैं..उहने भी कोई “इन्सेचुरिटीहै क्या ????? वो भी कहीं अकेला तोह नही पढ़ गया.... क्या उसे भी कोई चाहिए ... क्यूँ दिखता है आपनी ताकत हम पर... जब की जनता है की हम कुछ भी नही.... जब इतना बड़ा ही है तो साबित क्या करना हम पर .... हम तो हैं ही कमजोर॥ उसे क्या हमे डर है.... ये बात तो सच की लोग उसे प्यार कम डरते जादा है.... अगर वो मन्नते न पुरी करे तो कौन पुजेगा उसे... हम मे से वाकई कितने लोग उसे प्रेम करते हैं... उसे किसी वास्तु की कामना नही करते हैं ..... क्या भगवन हमारे जेहन की एक गफलत है.....



जब
सब उन्ही के हाँथ मे है तो , हम तो कभी कुछ फिर ख़ुद करते ही नही हैं, और जो चीज़ हम करते ही नही हैं आपनी मर्ज़ी से उसकी सज़ा या उसका इनाम हमे क्यूँ मिले ....



मैं जानती हूँ मेरा सवाल बहुत उलझे हुए हैं ….आप ये भी कह सकते हो की बेकार का सवाल है… मगर मैं फिर भी आपकी राये जन चाहूंगी….





“मैं जब नही जानता था तुम्हे , तो तुम्हे मानता था

मेरी अक्ल शुबहा करना सिखा दिया है मुझे



जब समझ नही थी तो सब समझ जाता था मैं

इस जेहन अब जाने क्या क्या बता दिया है मुझे




किताबें पढीं की और जान पाऊं तुम्हारे बारे मे

पर इन किताबों ने ही बहका दिया है मुझे "