Wednesday, September 17, 2008

भगवन भी insecurity का शिकार है क्या ???


अक्सर भगवन के अस्तित्व पर बहुत लोगों से मेरी बहस हो जाती है..ऐसा नही है के मैं उनके होने से इनकार करती हूँ… पर मेरा मानना है की तर्क किसी के वजूद को और पुख्ता कर देता है… जब शक होता है तो हम वजेह और साबुत ढूंढते हैं…. मैं ये मानती हूँ की शक यकीन की पहली सीढ़ी है.. किस भी बात पर आँख मूंद कर यकीन करने कोई अकलमंदी नही ….. बड़े बड़े गुरु कहते हैं की तर्क से भगवन को नही समझा जा सकता… तो क्या हम अपने दिमाग मे उठे सवालों को यूँही किसी जवाब तक पहुंचाए बिना छोड़ दे… और जब कोई फिर पूछे की जिस पर इतना यकीन करते हो उसकी ताकत साबित कर सकते हो… तब हम निरुत्तर हो जायेंगे …क्यूंकि कहीं न कहीं हमने भी ख़ुद से येही सवाल किया था..


ये हमेशा
मेरे जेहन मे आता है की जब वो भगवन इतना शक्तिशाली हैजिसकी मर्ज़ी के बिना एक पत्ता भी नही हिलता ..तो क्या वाकई उसे हमारी पूजा अर्चना की जरुरत है….उसे किस का भय हैहमेशा वो कहते हैंकी एक बार मेरे पास आओ तो मैं सब को तुम्हारा गुलाम कर दूंगाएक बार मेरे पिच्छे चलो दुनिया तुम्हारे पीछे चलेगी”…क्यूँ???..जो ख़ुद इतना शक्तिशाली हैं , सम्पुरण है, तो उन्हें क्यूँ हमारे साथ की जरुरत हैयह भी कहा जाता है की इंसान भगवान् का बनाया हुआ खिलौना हैवो हमसे खेलते हैंक्यूँ???…खेल से उन्हें खुशी मिलती हैपर वो तो ख़ुद परमानन्द हैजिनको आनंद की कोई कमी नही ..फिर इंसानों की तरह यह खुश होने की लालसा कैसी उन्हेंक्यूँ ऐसा है की इतने वर्त और नियम हैं .. क्या वो हमारी पूजा के भूखे हैं..उहने भी कोई “इन्सेचुरिटीहै क्या ????? वो भी कहीं अकेला तोह नही पढ़ गया.... क्या उसे भी कोई चाहिए ... क्यूँ दिखता है आपनी ताकत हम पर... जब की जनता है की हम कुछ भी नही.... जब इतना बड़ा ही है तो साबित क्या करना हम पर .... हम तो हैं ही कमजोर॥ उसे क्या हमे डर है.... ये बात तो सच की लोग उसे प्यार कम डरते जादा है.... अगर वो मन्नते न पुरी करे तो कौन पुजेगा उसे... हम मे से वाकई कितने लोग उसे प्रेम करते हैं... उसे किसी वास्तु की कामना नही करते हैं ..... क्या भगवन हमारे जेहन की एक गफलत है.....



जब
सब उन्ही के हाँथ मे है तो , हम तो कभी कुछ फिर ख़ुद करते ही नही हैं, और जो चीज़ हम करते ही नही हैं आपनी मर्ज़ी से उसकी सज़ा या उसका इनाम हमे क्यूँ मिले ....



मैं जानती हूँ मेरा सवाल बहुत उलझे हुए हैं ….आप ये भी कह सकते हो की बेकार का सवाल है… मगर मैं फिर भी आपकी राये जन चाहूंगी….





“मैं जब नही जानता था तुम्हे , तो तुम्हे मानता था

मेरी अक्ल शुबहा करना सिखा दिया है मुझे



जब समझ नही थी तो सब समझ जाता था मैं

इस जेहन अब जाने क्या क्या बता दिया है मुझे




किताबें पढीं की और जान पाऊं तुम्हारे बारे मे

पर इन किताबों ने ही बहका दिया है मुझे "



12 comments:

manas bharadwaj said...

khuda us hasti kaa naam hai
jo rahe saamne or dikhayi na de

...................

aisa badr sahab kehte hain ..................
mujhe nahi pata hai ya fir main is baat me nahipadna chahta ki woh hasti kya hai ?
par aap jo saval kar rahi hain woh sawal har kisi ke mastik me kabhi na kabhi to uthte hi rehte hain ..............

or inhi savalon ki buniyad ye jivan hai ...............
mujhe nahi pata hai ki jivan kya ????aapko pata hai kya ????
jab mujhe yahi nahi pata hai ki jivan kya hai ???bhagwan ke baare me main kaise keh sakta hoon ????............

aryaman said...

dekh raha hun ki yeh aapki pehli post hai apne blog mein

bahut khubsurat likha hai aapne

kuchh aisa hi kabhi mere bhi dimaag mein aaya karta hai......

nice work.....keep it up

Vikas Rana "Fikr" said...

aapke sare swaal sahi hai

bhagwaan ne kabhi nahi kaha meri pooja karo

bas woh ye kahta hai mujhpe yakeen karo
jab bhagwaan ne dunia banayee to usne shaittan bhi aayaa

aur insaan bhi bhagwaan ne insaan ko azaad paida kiya aur ye bhi kaha ki ye insaan ki marzi hai woh kispe yakeen kare insaan ko azaad chod diya tha usne

shayd shakeel sahab ne hi kaha hai ..

jo samne hai use bura kahte hai jise dekha hi nahi use khuda kahte hai.

Aashish said...

All Ur raised questions are true and guinuine.all these god type stories are just to teach moral studies to children...
Moreover i can say ,all these are just human perception to have something to whom they can blame on their failure, like" Bhagwaan Nahi Chahta To Ye Kaise Hoga" and bla-bla...

I am not completely denying the existence of god like things, but it should not be taken as everything, god should not be taken as a single Doer.

Go ahead in ur right way, god will be with u...

Purnima said...

manas bhardawaj ji bahut tak aap sach keh rahe hain ki..jab jeevan kya hai hume yeh hi nahi pata hai to hum bhagwan kya hai ke vishay mei kyun sochen... par kya nahi sochne ke liye kya yehi daliil kafi hai...
khair ye sach hai jis ke bare mei hum nahi jante us ke bare mei kehna nahi chaiye,,,, par soch par to kisi ka bas nahi hai.....aur agar hum sochenge nahi to jaane ki iccha nahi hogi...aur ye puri duniya jis shanti ki talash mei hai..kahin na kahin ye vishay bhi isi se juda hai......

@vikash ji ..main manti hun bhagwan nahi kabhi nahi kaha ki meri puja karo...lekin aap jab ye toh mante hain na ki swayam sri krishan ji ne kaha hai ki meri sharan mei aao, tumhe koi kasht nahi hoga..duniya ki maya se paar pa jaoge... kyun ..jab maya aapki hi banai hui hai to kyun chahte hain ki hum iska tyag karen...

..agar aap kuch es vishay par aur kehna chahenge to mujhe bahut khushi hogi....

कुमार पंकज said...

पूर्णिमा ! आपने लिखा--''अक्सर भगवन के अस्तित्व पर बहुत लोगों से मेरी बहस हो जाती है''
भगवान् बहस का विषय नहीं है. हमारी इस विषय पर जब भी किसी से बात होगी वो दो प्रकार के लोग होंगे एक तो वो जो उसे मानते हैं...एक वो जो उसे नहीं मानते. कोई भी तर्क आसानी से इन दोनों कि ही विचारधारा को परिवर्तित नहीं कर सकता. कयोंकि ये मामला केवल मानने या ना मानने तक ही नहीं सिमटा है. इसके पीछे निवास करता है..... वो संस्कारित मन जिसे सदियाँ लगाकर इस बात के लिए राज़ी किया गया है की ईश्वर होता है.इसके पीछे खड़े हैं वो सारे मानव-भय, असुरक्षा की भावना जो सदैव किसी ''बिग ब्रोदर'' की तलाश करती रही है.हम जब-जब असुरक्षा के माहौल में जाते हैं. मन तलाश करता है उस शक्तिशाली अस्तित्व कि जो आकर ये कह सके कि- ''चिंता मत कर....मैं सब संभाल लूँगा'' कोई हो..... जो उन सारे भयों से मुक्ति दिला दे जिन में मन तिल-तिल जल रहा है. वो भय और असुरक्षा चाहे संतान-प्राप्ति की हो...मुक़दमे में जीत की हो...गरीबी की हो..बीमारियों से मुक्ति की हो या फिर अन्य किसी रूप में. मानव के द्वारा निर्मित ज्यादातर ईश्वर भय का सृजन है पूर्णिमा.वो पानी से डरा तो 'जल-देवता' वो आग से डरा तो 'अग्नि-देवता' वो तूफानों से डरा तो 'वायु-देवता' अब ये बात सही से समझ लेने जैसी है कि ....भय शोषण का सर्वोत्तम हथियार है. आप जब तक किसी बात से भयभीत नहीं हैं आपको शोषित किया जाना कठिन है. मगर जैसे ही आप भयभीत होते हैं. लोग खड़े हो जाते है आपके उस भय को तिरोहित करने के उपाय बताने के लिए. यहाँ से पुरोहित और पुजारी जन्म लेते हैं. पुरोहित वो सब तरीके बताता है जो आपके भय को विलुप्त कर सकते हैं. वो मानव-मन कि अँधेरी अभिलाषाओं को पूरा करने के दिव्य-उपाय बताता है.धर्म या ईश्वर कभी भी आम आदमी की संपत्ति नहीं रहा. वो पुजारियों और पुरोहितों की कैद में फंसा एक ऐसा निर्माण है जो कैदखाने में अपनी उम्रकैद गुजार रहा है.

''ऐसा नही है के मैं उनके होने से इनकार करती हूँ… पर मेरा मानना है की तर्क किसी के वजूद को और पुख्ता कर देता है… जब शक होता है तो हम वजेह और साबुत ढूंढते हैं…. मैं ये मानती हूँ की शक यकीन की पहली सीढ़ी है''----

-क्यों नहीं इनकार करतीं पूर्णिमा....उसके होने से इनकार क्यों नहीं करतीं...? यदि तुम्हें लगता है की उसका अस्तित्व कहीं नहीं है तो हिम्मत के साथ इनकार करना चाहिए. मगर यहाँ कई कारण समझने जैसे हैं. पहला अभी सारी शंकाएँ मिटी नहीं हैं......दूसरा....मन असमंजस में है अगर 'हुआ' तो क्या होगा ? तीसरा, सारी दुनिया मान रही है ऐसे में मैं ये कह दूँ की 'नहीं है' लोग पागल समझकर पत्थर मरेंगे.....सारी भीड़ एक तरफ हो सकती है....घर-परिवार से निष्काषित किया जा सकता है. मगर सत्य भीड़ का मोहताज कब रहा है. तर्क कभी किसी के वजूद को पुख्ता नहीं करता पूर्णिमा. तर्क केवल हमारी मान्यताओं की ढाल ....हमारी विचारधाराओं के कवच के रूप में काम करता है. जो लोग कहते हैं की 'ईश्वर है'' उनका तर्क उनकी मान्यताओं को कवच दे रहा है....जो कहते हैं की ''नहीं है' वो उनकी मान्यताओं को कवच दे रहा है. तर्क वेश्या की तरह काम करता है जो ज्यादा पारितोषिक देगा वो उसके साथ चल देगी. यही तर्क का काम है....जो ज्यादा मजबूती से ...कुटिलता से....दुस्साहस से....जानकारी से अपना तर्क रख सकता है. तर्क उसका हो जायेगा.तर्क से हम सत्य को ढूँढने कि कोशिश करते हैं. मगर जो तर्क आज सत्य को स्थापित कर रहा है कल कोई उससे मज़बूत तर्क उसी सत्य को विस्थापित भी कर सकता है. यहाँ बात तर्क कि नहीं है. यहाँ बात है अनुभूतियों की....! आप तर्क से साबित कर सकते हैं की आग से हाथ जलता है.....ये भी साबित कर सकते हैं की आग से हाथ नहीं जलता.. मगर मामला नितांत तर्क का नहीं है ....आप आग में हाथ डालकर जो अनुभूति लेंगे वो सत्य होगी.शक यकीन की पहली सीढ़ी अगर मान लिया जाय. तो कहीं ये भी इशारा हो रहा है की 'शक' यकीन करने के लिए किया जा रहा है. यानी मन से कहीं आप 'यकीन करना'' चाहते है. आप शक को केवल सीढ़ी बना रहे हैं.ये पूर्वाग्रह से ग्रसित शक होगा. नहीं.......शक कोई सीढ़ी मत बनाओ यकीन की.....आप केवल संदेह करो .....उसका निस्तारण करो....परिणाम की चिंता मत करो....परिणाम निर्धारित भी मत करो की शक के बाद इस नतीजे पर पहुंचना है. आप केवल प्रयोग करो.....तर्क के साथ संदेह के साथ...बाकी परिणाम जो भी आये उसका स्वागत करो पूर्णिमा.

''किस भी बात पर आँख मूंद कर यकीन करने कोई अकलमंदी नही ….. बड़े बड़े गुरु कहते हैं की तर्क से भगवन को नही समझा जा सकता… तो क्या हम अपने दिमाग मे उठे सवालों को यूँही किसी जवाब तक पहुंचाए बिना छोड़ दे… और जब कोई फिर पूछे की जिस पर इतना यकीन करते हो उसकी ताकत साबित कर सकते हो… तब हम निरुत्तर हो जायेंगे …क्यूंकि कहीं न कहीं हमने भी ख़ुद से येही सवाल किया था''

पूर्णिमा..! अकलमंदी तो आँख खोलकर यकीन करने में भी नहीं है. आँखे सत्य को देखने को गारंटी नहीं हैं. ये छल का शिकार बड़ी आसानी से हो सकती हैं. दुसरे अकल भी बहुत बौनी वस्तु है.अकल से भी सत्य को समझना कठिन है....अकल को हम केवल एक सेतु की तरह प्रयोग कर सकते हैं. नदी के इस किनारे से उस किनारे तक पहुँचने के लिए. ये केवल एक जर्जर माध्यम की तरह काम करती है. रही बात गुरु की....धर्म को या ईश्वर को समझने में यदी कोई सबसे बड़ा खतरा है.. तो वो ये 'बड़े-बड़े गुरु' ही हैं.और इनका हर वक्तव्य बहुत चालाकी और कूटनीति से भरा होता है. जब ये कहते हैं की 'तर्क से भगवान् को नहीं समझा जा सकता' तब ये आपसे वो बे-शर्त समर्पण मांग रहे होते हैं जिसमें आप अपना तन...मन....और धन....ईश्वर के चरणों में समर्पित कर सको....और उसके चरणों के पास् उनकी एकक्षत्र सत्ता है....वो सारा कुछ जो आप समर्पित करते हो वो उनकी व्यक्तिगत संपत्ति हो जाता है.....और धन उनकी तिजोरियों की शोभा बढा रहा होता है और तन उनके शयनकक्षों की. हाँ..अपने दिमाग में उठ रहे सवालों को यूँ ही अनुत्तरित नहीं छोड़ना है...उनके सटीक उत्तर तलाश करने हैं....मगर ध्यान रहे ! ये उत्तर की तलाश किसी तथाकथित धर्मगुरु के चरणों में बैठकर नहीं करनी है....ये अंतर्यात्रा अकेले की है....उत्तर लेने हैं...मगर किसी के दिए हुए नहीं...वो उत्तर आपके होने चाहियें....प्रश्न भी आपका हो....उत्तर भी आपका हो....कई बार ऐसा होता है कि प्रश्न भी हमारा नहीं होता और उत्तर भी हमारा नहीं होता. प्रश्न भी उधार के होते हैं और उत्तर भी. प्रश्न सुना होता है किसी से ......लगता है कि ये मेरा प्रश्न है....उत्तर सुना होता है किसी से...लगने लगता ही कि ये मेरा ही उत्तर है...ऐसा नहीं. दोनों तुम्हारे ही हों. बेशक प्रश्न बचकाने हों...बेशक वो दर्शन के स्तर पर खरे न हों ...पर हों आपके अपने. सवालों को ज़वाब तक ज़रूर पहुंचाना है...मगर वो ज़वाब आपकी खोज.. आपके व्यक्तिगत अन्वेषण से उपजे हों.....दूसरी और महत्वपूर्ण बात-- किसी के भी पूछने पर किसी कि भी ताकत साबित करने कि कोई आवश्यकता नहीं है.मगर जब हम ऐसी कोई ताकत साबित करना चाहते हैं तो वस्तुतः हम 'उसकी' ताकत साबित नहीं कर रहे होते....हम खुद को गलत साबित होने से बचाना चाहते हैं..क्योंकि अगर उसमें कोई ताकत हम साबित नहीं कर पाए तो लोग क्या कहेंगे ..कैसी कमज़ोर शक्ति के अनुयायी बन गए हो...? ये झगडा ईश्वर के शक्तिशाली होने का नहीं है ...ये अनुयायी का झगडा है..वो कभी गलत नहीं होना चाहता. वो साबित करना चाहता है कि मुझे मूर्ख मत समझना ...जिसे मैंने चुना है..वो कोई मामूली ताकत नहीं है....वो 'ये' भी कर सकती है और 'वो' भी....निरुत्तर हम केवल तब होते हैं जब उत्तर हमारा दिया हुआ न हो...वो कहीं से पढ़ा हो....किसी धर्मगुरु से सुना हो..तब उसका प्रतितर्क मिलते ही हम निरुत्तर हो जाते हैं....मगर अगर उत्तर अगर हमारे अंतस से अंकुरित हुआ है....तो तब उस उत्तर को किसी को देने कि भी ज़रुरत नहीं रह जाती... वो हम खुद समझ लेते हैं और बात ख़त्म हो जाती है.

''ये हमेशा मेरे जेहन मे आता है की जब वो भगवन इतना शक्तिशाली है…जिसकी मर्ज़ी के बिना एक पत्ता भी नही हिलता ..तो क्या वाकई उसे हमारी पूजा अर्चना की जरुरत है….उसे किस का भय है… हमेशा वो कहते हैं “की एक बार मेरे पास आओ तो मैं सब को तुम्हारा गुलाम कर दूंगा…एक बार मेरे पिच्छे चलो दुनिया तुम्हारे पीछे चलेगी”…क्यूँ???..जो ख़ुद इतना शक्तिशाली हैं , सम्पुरण है, तो उन्हें क्यूँ हमारे साथ की जरुरत है ?''

पूर्णिमा....! पूजा-अर्चना सब धर्म के ठेकेदारों कि इजाद कि हुयी पद्धतियाँ हैं.....ये धर्म का दुश्चक्र है जो सदियों से अनवरत चला आ रहा है....मानव ने भगवान् कि कल्पना सदैव अपने ही स्वरूप में कि है...उसने स्वयम को ईश्वर में आरोपित किया है....उसने भगवान् कि जो आदतें निर्धारित कि हैं वो सब उसकी अपनी आदतों से मिलती-जुलती हैं...इंसान प्रशंसा करने पर खुश होता है तो उसका बनाया हुआ ईश्वर भी खुश होता है......मानव निंदा करने पर नाराज़ होता है तो उसका ईश्वर भी निंदा करने पर नाराज़ हो जाता है....इंसान उपहार देने पर खुश होता है तो उसके द्वारा निर्मित ईश्वर भी....मानव ने खुद को ईश्वर में आरोपित किया है मानव अपना अनुसरण करने पर प्रसन्न होता है तो उसका बनाया हुआ ईश्वर भी अनुसरण करने पर प्रसन्न होता है...सत्यत: उसे हमारे साथ कि कोई आवश्यकता ना कभी थी न ही है...ये सब पुरोहितों और पुजारियों कि आवश्यकताएं हैं ....मुसलमानों का ईश्वर बहुत पजेसिव है,....वो कुरान में साफ़ -साफ़ कहता है कि मेरी इबादत ना करने वालों को मैं नष्ट कर दूंगा...किसी दुसरे भगवान् कि पूजा करने वालों को मैं दोजख में डाळ दूंगा.और ये नर्क-स्वर्ग सब मानव कि ईजाद हैं....अरब मुल्कों के नर्क में आग है....नर्क कि आग...जो कभी नहीं बुझती....क्योंकि गरम देशों के नागरिकों के लिए गर्मी से बड़ा नर्क दूसरा हो नहीं सकता..उन्होंने जिस नर्क कि कल्पना कि वो आग से भरा है.....और ठंडे देशों के नर्क में बर्फ है 'इटरनल आइस' जो कभी नहीं पिघलता....आदमी उसमें सदैव गलता रहता है.ये सब मानव को भयभीत करने के उपाय है. भय कि ज़मीन पर ही शोषण का वट-वृक्ष उगता है.

''यह भी कहा जाता है की इंसान भगवान् का बनाया हुआ खिलौना है… वो हमसे खेलते हैं… क्यूँ???…खेल से उन्हें खुशी मिलती है…पर वो तो ख़ुद परमानन्द है…जिनको आनंद की कोई कमी नही ..फिर इंसानों की तरह यह खुश होने की लालसा कैसी उन्हें… क्यूँ ऐसा है की इतने वर्त और नियम हैं .. क्या वो हमारी पूजा के भूखे हैं..उहने भी कोई “इन्सेचुरिटी” है क्या ????? वो भी कहीं अकेला तोह नही पढ़ गया.... क्या उसे भी कोई चाहिए ... क्यूँ दिखता है आपनी ताकत हम पर... जब की जनता है की हम कुछ भी नही.... जब इतना बड़ा ही है तो साबित क्या करना हम पर .... हम तो हैं ही कमजोर॥ उसे क्या हमे डर है.... ये बात तो सच की लोग उसे प्यार कम डरते जादा है.... अगर वो मन्नते न पुरी करे तो कौन पुजेगा उसे... हम मे से वाकई कितने लोग उसे प्रेम करते हैं... उसे किसी वास्तु की कामना नही करते हैं ..... क्या भगवन हमारे जेहन की एक गफलत है.....?''

जो कहा जाता है उस पर ज्यादा विश्वास मत करो पूर्णिमा....और धर्म के विषय में तो कम से कम नहीं...यहाँ कोई किसी के साथ नहीं खेल रहा ...कम से कम ईश्वर तो कतई नहीं.....यदि कोई खेल रहा है तो वो मनुष्य है जो भगवान् के साथ खेल रहा है .....एक खिलोने कि तरह...इंसान हर पग पर भगवान् से खेल रहा है......अगर उसका अस्तित्व कहीं होगा तो वो आज तक का सबसे एकाकी व्यक्तित्व होगा.......भगवान् कि कोई पूजा ना करे कोई फर्क भगवान् को नहीं पड़ता....मगर फर्क पड़ता है धर्मगुरु को ..........पुरोहित को .मौलवी को....उनका सारा व्यापार इसी पर तो टिका है.....और वो अपने पेट पर लात कभी नहीं लगने देते.....ये लोग दुनिया के सबसे चालाक लोगों में से एक हैं. वो कभी किसी पर कोई ताकत नहीं दिखाता....वो क्या ताकत दिखायेगा...वो तो खुद बेचारा है ....अगर कहीं हुआ तो....ये सारा धंधा धर्म के पुरोधाओं का है.....! भगवान् भयभीत चित्त कि ही उत्पत्ति है पूर्णिमा...मन्नतें कमज़ोर आत्मबल और अधूरी अभिलाषाओं का प्रतिबिम्ब हैं.भगवान् जेहन कि गफलत नहीं है पूर्णिमा....ये जेहन के पूरे होशों-हवाश से अविष्कृत किया गया धोखा है.....!

--कुमार पंकज

Vikas Rana "Fikr" said...

wel krishan ji ne yahi kaha ki mere pas aao

well agar is baat pe yakeen kar sakte hai to ye b yakeen karna chahiye ki woh sahi kah rahe honge

well agar unko mane to .. fir lazmi hai woh bhagwaan honge
jo humko sahi rasta batayenge

aur moh se dor le jayenge
aur ye mera personal exp. hai ki moh sirf dukh deta hai...

well meri samjh mai to bhagwaan
se matlab

bh-- se -- bhoomi
g -- se gagan

ba -- se vayu

n se neer yani pani

in sare tatvo ka milan hi bhagwaan hai

aur humme ye element har woqt hote hai

so we are always with god ...

waki maine is nazm mai kah diya tha ...



मैंने उस तक पहुँचने के लिए
कोई भी जरीया नहीं बनाया
कोई मजहब नहीं अपनाया

उसे यहाँ बहाँ ढूँढू भी क्या
वो किसी को नज़र भी नहीं आया

अब भला खुद को खुद ही की
आँखों से कौन देख सका है
वो मेरी हो आँखों से देखता
मेरे ही हाथो से मुझे छूता
मेरे ही लबों से सिसकता है

हमे खुद को देखने-छूने के लिए
नज़र की उजालो की दर्कार नहीं

वो मेरे ही जिस्म मे सर से
पांव तक अपनी साँस लेता है
मेरा जिस्म काबा भी किबला भी

बाहर क्यों वो अंदर ही वास रहता है
मुझमे बनके रूह का अहसास रहता है
मेरा खुदा हमेशा ही मेरे पास रहता है

janumanu.........!!

Purnima said...

@ pankaj jii...aapka bahut bahut shukariya ki aapne mere sawaalon ko naya aayam diya hai..aapne tareeke se samjhane ki koshish ki hai...bahut had tak main apki baat se sehmat bhi hun...

jahan tak shaq ki baat hai.... uska koi ant nahi hai...jab tak hamara yaqeen itna pukhta na ho ki koi baat asar nah kar sake... maine kaha na ki main bhagwaan ke astitva ko jhuthlati nahi hun... es liye nahi ki jhuth lane se darti hun...balki is liye ki main un par yaqeen karti hun.... magar meri shanka ka karan unka hona ya nah hona nahi hai...baat humari manyataon ki hai....jo jug jug se chali aarahi hain....

mujhe taleef unke hone se hai.....main adhe se zada ko khariz karti hun...wo humari sahuliyat k liye banai gayi thi na ki humari takleef k liye...

bahut sare tariike vedon mein bataye gaye hain ki eshwar ki parapti kaise ho... eshawar kya hai...aapki tarah mera manna bhi yehi hai ki ...sabka aapna aapna bhagwaan hai kyunki ise ki baat ya tark pe sabit nahi kiya ja sakta hai..ye anubhuti hai...jise kabhi jaazir nahi kiya ja sakta...

magar kabhi kabhi aisa bhi hotahai ki main jo samjhti hun use batana bhi zaruri hai.... kyunki purani manayaton ko thukara na itna aasaan nahi...main bheedh mei nahi shamil hona chahti hun..magar unke naam pe jo aayachar hote hain use main bardasht nahi kar pati hun....


jaise sabse bada pradh jo aaj bhi hota hai wo hai dharm aur jati ko lekar

aaj bhi logon ka maana hai ki ye bhagwaan ki banai hui cheezen hai....main ek bhraman parivar se hun ...mujhe ye bikul bhi accha nahi lagta hai ki kisi ko hin bhawana se dekhen kewal es liye ki wo choti jaat ka hai...main ye baat aapne bade logon ko samjhana chahti hun kuch es tarah se ki unki bhawnayon ko bhi chot nah pahunche aaur wo meri baat bhi samjhe....


pata hai main nahi chahti ki aaj tak jo wo eshwar ke swarup ko samjhte aayen hai use jhuthla dun...kyun es umr mei unke jiwaaan bhar ki unki yehi punji hai... unka yehi vishwas hai... unhone isi swarup mei eshwar ki aradhna ki hai....kisi ka vishwas thodhna nahi chahti...magar wo kisi ko takleef de...kisi ved puran ko maan ke ye bhi bardasht nahi kar sakti.... shayad unke zamane mei jo purohiton ne bataya unhone us par ankh mund k yaqeen kar liya...kyunki wo tark ya prashn nahi kar sakte tha....kyunki utna shayad kuch padha hi nahi tha... purohiton ki wani unke liye ved vaani thi... aaj unka vishwaas andhvishwaas ho gaya hai.....


mere liye eshwar ki asl puja hai ki uske banaye hue insaan ko main kisi bhi rup mei kast na dun..meri bhakti yehi hai ki jitna ho sake main auron ko bhi ye karne se rokun....eshwar ko pane ka dusra naam main prem ko samjhti hun.... main ye manti hun ... ki koi shaki jarur hai jo hum sab ko sanchalit karti hai...magar use judhe andhvishwas ko mitana chahti hun.... aur ye srif apni anubhuti se nahi ho sakta hai.... kyunki yahan prashn mere maane ya nahi maane ka nahi hai.... ye unke vishwas ka hai...wo dharm k naam par anjane mei aanay kar rahe hain.....


mujhe bas kuch prashon k uttar chahiyen...kyunki jab wo tark karte hain aapne vedon ko lekar to mujhe aapni anubhutiyon ko sabit karna hai... bas andhwishwas mitane ke liye
........

Unknown said...

Aap bhi aate rahiye hume bhi bulate rahiye,
Dosti jurm nahi dost banate rahiye,
tasveer to jehan mein aapke bhi hogi koi,
kabhi to ban jaayegi tasveer banate rahiye...

very nice blog...

http://shayrionline.blogspot.com/

Carryin on with life... said...

let me try to clear out some doubts which u r having....u say why god give us pain if he is omnipotent...
tell me something i know u r not a mother but i guess u have a niece i saw i pics...tell me do u love her...

of course u do...

tell me wud u do everything to prevent pain in her life....wud u let her drive cycle on her own even if she doesnt know how to drive it very skillfully....

i know u wud and u wud tell her to be more careful..

so as a adult and a guardian u wud give her some basic good advice and than let her go and make her won mistake while riding the bike...

i know u wud run behind her a little and than leave her on her own....

but what wud happen if she fell down and get hurt

u will go and pamper her a little but atlast its her job to learn to be mre careful.... isnt it..

so tell me although u have power to interfere and prevent pain from ur neice u let her learn from her own mistakes....cuz pain is part of growin up and its how we learn....

samjhe

Dev said...

Bhagavan ek bahut bada discussion ka subject hai...Bhagavan hai ya nahi hai ya hai to kya karta hai ,q karata hai.
Nitaze ek bahut bada manochikisak tha aur usane kaha ki Bahgavan mar gaya, yah ek nasti vichar tha jiski vajah se nisje ne kaphi dukh saha aur use sah pane ki samrthay bhi nahi thi.Abhi kuchh din pahale ek article paper me aaya tha ki aastiko ko nastiko ki tulana me kam dukh hota hai.

Par ek bat mai aapse kahana chahata hoon ki kya Bhagavan ki parikalpana ke bina yah sansaar chal payega, aap kisi daram ko le ligiye, jati ko le ligiye aapko har jagah Bhagavan ki dastak sunai degi , saval uthata hai ki aakhir q ? Q Bhagavan ki jarurat har jagah pad rahi hai jaha bhi manav hai chahe vah America ho, Chin ho, Japan ho , har jagah Bhagavan ki parikalpana milegi. Aakhir aisa kya hai Bhagavan me jisaki sab ko jarurat pad rahi hai aur yah shirf ettifak nahi hai ki har jagah Bhagavan hai, har daram ka apana ek Bhagavan hai.

Bhagavan ek sakti hai, jo hame apne dukhon, takaliphon se ladane ki sakati deta hai.Aisa nahi ki Bhagavan kahi mandir me batha hai,Bhagavan hamare andar hi hai.Bhagavan means ek suprim power jo hamare andar hi hai,jab hame etani pida hoti hai ki ham sah nahi pate tab ham Bhagavam ko yaad karte hai means jo hamare andar jo us dukh ko sahane ki chhamata hai use jagate hai, invoke karate hai varana vah sakti soi padi hai.Yadi Bhagavan ki pariklapana na ho to hamari jeendagi me etane dukh hai ki hum suiside kar le , par ham Bagavan ke sahare sab mushibat , pida, kasta , gam ko par kar leta hai varna jeevan ke dukh ko yah puri manvata nahi jhel payegi....

Bhagavan aapke andar soyi ek saki hai jo aapko har sangharsh , dukh se mukati dilati hai, sahane ki chhamata deti hai....

Bahut achchha visay uthaya hai aapne , samay ki kami hai varna abhi bahut si bate hai jo mai Bahagavan ke bare me kahana chahata hoo....

http://dev-poetry.blogspot.com/

Santosh Kumar said...

acha lekh hai